फेसबुक पर फेक प्रोफाइल्स के पीछे सेक्स और अपराध ? (भाग-1)
|राकेश सिंह|16 फरवरी 2013|
फेसबुक से जुड़े आंकड़े चौंकाने वाले हैं. यहाँ कुल एकाउंट्स की संख्यां करीब सवा अरब के करीब है यानि यदि दुनियां की कुल आबादी अभी सवा सात अरब के आसपास है तो कहने का मतलब कि दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी फेसबुक पर?
      आइये पहले अन्य आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं फिर गौर करेंगे इस आश्चर्यजनक सवा अरब के आकड़े पर.
      फेसबुक के करीब 70 प्रतिशत यूजर्स मोबाइल यूजर्स हैं. इसपर पेजों को लाइक करने वालों की संख्यां 1200 अरब है. करीब 150 अरब मित्र-मंडली हैं, अब तक 25 खरब से ज्यादा इसपर फोटो अपलोड किये गए हैं और इसके सबसे ज्यादा यूजर्स औसतन 22 साल के हैं.
      इन आंकड़ों की तह में यदि आप जाएँ तो कह सकते हैं कि जहाँ अभी भी कई देक्षों में भुखमरी की स्थिति है वहाँ आधी आबादी फेसबुक पर ? हम जोड़ते हैं इसे यूजर्स के एज-ग्रुप की मानसिकता और फेक एकाउंट्स (फर्जी खाते) की संख्यां से. बेहद चौंकाने वाले आंकड़े ये भी हैं कि फेसबुक पर करीब 10 करोड़ खाते यानी करीब 9% खाते फर्जी हैं. क्यों बनाया जाता है ये फर्जी खाता और कौन से लोग हैं इनमें शामिल ?
      अगर इन फेक एकाउंट्स की भी तह में घुसते हैं तो फेसबुक पर सेक्स और अपराध की एक बड़ी दुनियां और इससे जुड़े कई बड़े रैकेट्स नजर आयेंगे.
चौंक गए न ? हम बताएँगे आपको इस पर विस्तार से और ये भी बताएँगे कि इन फेक एकाउंट्स को पहचानना कितना आसान है. (क्रमशJ

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'इन्टरनेट लत विकार'-भारतीय युवाओं में बढ़ता रोग
इन्टरनेट लत विकार(Internet  Addiction  Disorder ) शायद आज सबसे तकनीकी और आधुनिक और ख़ास कर एकमात्र  ऐसी  बीमारी है जो सिर्फ  पढ़े-लिखे  युवाओं को अपने गिरफ्त में ले रही है.सबसे पहले यह जान लेना उचित होगा की यह बीमारी सिर्फ इन्टरनेट के अत्यधिक प्रयोग करने वाले को ही होती है.
                  वैसे तो सबसे पहले इसे बीमारी के रूप में न्युयोर्क के मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. इवान गोल्डबर्ग ने १९९५ ई० में पहचाना था और इसके लक्षणों को दुनिया के सामने रख कर इस शब्द को मेडिकल साइंस में जगह दिलवाने की कोशिश की थी,पर तब शायद दुनिया ने इसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया था.पर जैसे-जैसे इन्टरनेट का प्रसार पूरी दुनिया में हुआ,ये बीमारी एक गंभीर समस्या के रूप में उभर कर सामने आ गयी .आज ये जब करोड़ों लोगों की जिन्दगी बर्बाद करने लगी  तो शायद इसके प्रति जागरूकता की आवश्यकता पूरी दुनिया को महसूस होने लगी है.
  क्यों होता है ये विकार और इसके लक्षण क्या हैं?
वर्ष १९९६ में अमेरिका में पहली बार डा. किम्बरले यंग के द्वारा इन्टरनेट लत विकार पर अध्ययन किये गए तथा टोरंटो  में हुए अमेरिकन सायकोलोजिकल असोसिअसन के वार्षिक कांफेरेंस में उन्होंने अपना पेपर "इन्टरनेट एडिक्सन:द इमर्जेंस आफ  न्यू डिसऑर्डर" प्रस्तुत किया.उसके बाद पूरे विश्व में इस पर अध्ययन का सिलसिला शुरू हुआ और पाया गया कि दुनियां के कई देश गंभीर रूप से इसके गिरफ्त में हैं.
   आइये इसके कुछ विशेष लक्षणों पर दृष्टिपात करें और खुद को देखें कि क्या आप भी इसकी गिरफ्त में आ रहें हैं?
  1.क्या आप इन्टरनेट पर अपने कार्यालय या अध्ययन के अलावे ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहते हैं?
  २.क्या आप जितना सोच कर नेट पर बैठते हैं,बैठने के बाद उससे काफी ज्यादा यूज करते हैं?
  ३.क्या इन्टरनेट के यूज के समय या बाद आप ज्यादा बेचैन, निराश,मूडी या चिडचिडा महसूस करते हैं?
  ४.क्या आप निष्पक्ष होकर कह सकते हैं कि आप इन्टरनेट के चलते परिवार,कार्य,शिक्षा या भविष्य को नजर अंदाज करने लगे हैं?
  ५. क्या आप इन्टरनेट के प्रयोग कि मात्रा या प्रकार के बारे में लोगों से छिपाते हैं?
  ६.क्या आप अपने व्यवहार को नियंत्रित करने का असफल प्रयास करते हैं?
  ७.क्या हर बार या अक्सर इन्टरनेट यूज करने के बाद आप यह सोचते हैं कि अगली बार कम यूज करेंगे?
  ८.क्या आप इन्टरनेट के प्रयोग के समय असीम आनंद की अनुभूति करते हैं?
  ९.क्या आप ऑनलाइन रहने के लिए नींद की अवहेलना करते हैं?
  १०.क्या आप नेट के प्रयोग के बाद अपने को शर्मिंदा,चिंतित या अवसादग्रस्त पाते हैं?
               यदि उपर्युक्त प्रश्नों में से आप एक भी उत्तर हाँ में देते हैं,तो समझिये आप इस महामारी जिसे अंग्रेजी में इन्टरनेट एडिक्सन डिसआर्डर (आइ० ए० डी0) और मेरे अनुसार हिंदी में 'इन्टरनेट लत विकार' (ई० ल० वि०) कहा जा सकता है,के शिकार हो गए हैं,जो एक अत्यंत गंभीर मानसिक रोग है और इसके लिए इलाज की आवश्यकता हो सकती है.
    भारत में इसके तरफ लोगों का ध्यान तब से जाने लगा जब २००५ ई० में IIT Bombay के चोथे वर्ष के छात्र विजय नुकाला ने अत्यधिक कंप्यूटर के प्रयोग के चलते तीन विषयों में फेल हो जाने के कारण आत्महत्या कर ली.(विस्तृत समाचार के यहाँ ल्किक करें.)
   दरअसल इंजीनियरिग तथा अन्य कॉलेज के होस्टलों में देर रात तक हैकिंग कम्पिटीसन,गेमिंग कम्पिटीसन,म्यूजिक तथा सॉफ्टवेर डाउनलोड, अश्लील पिक्चर तथा विडियो डाउनलोड,चेटिंग तथा ओर्कुटिंग आदि में रात में व्यस्त रहने के कारण ख़ास कर सुबह वाले क्लास में इनकी उपस्थिति कम हो जाती हैं और अकेडमिक कैरिअर ख़राब हो जाने की वजह इनके डिप्रेसन व आत्महत्या का कारण बनती है.

  इन्टरनेट का अनियंत्रित प्रयोग खतरनाक
इन्टरनेट के प्रयोग में एक महत्वपूर्ण बात जो सामने आती है,वो है यूजर्स का 'वर्चुअल' लाइफ में यानी काल्पनिक दुनिया में खो जाना और यहीं से युवा मानसिक रोगी हो जाते हैं.इन्टरनेट पर उन्हें विपरीत यौन सम्बन्ध तथा साइबर सेक्स तक की आज़ादी मिल जाती है,चेटिंग आदि के माध्यम से,खास कर इन्टरनेट पर उपलब्ध सेक्स संबंधी चेटिंग रूम में यौन संतुष्टि तक का एहसास मिल जाता है.विपरीत यौनाकर्षण तथा दोस्ती कर वे कल्पना की दुनिया में खोये रहना चाहते हैं और उस समय इसमें बाधा उत्पन्न होने पर वो झल्ला उठते हैं और यहीं से उनमे चिडचिडापन,डिप्रेसन आदि पनपने लगता है.इन्टरनेट पर उपलब्ध अथाह सामग्री के द्वारा वे अपने अन्य शौक भी पूरा करने में अनियंत्रित हो जाते हैं.
   अभी तक भारतीय समाज में इन्टरनेट के प्रयोग करने वाले को प्रशंसा की दृष्टि से देखा जाता है और उनके अभिभावक भी इस इस बात पर ध्यान नहीं दे पाते हैं कि इस सुविधा का अत्यधिक या बेवजह प्रयोग जानलेवा अथवा कम से कम भविष्य बिगाड़ने वाला तो साबित हो ही सकता है.

कैसे रोकें इस बीमारी को?
 सबसे पहले तो किसी भी लत को दूर करने के लिए रोगी(यहाँ इन्टरनेट रोगी) को स्वयं आत्मविश्वास के साथ अपने को नियंत्रित करने की आवश्यकता है.अभिभावक को चाहिए कि वो खुद भी इन्टरनेट की जानकारी प्राप्त करें और बच्चों को अत्यधिक इन्टरनेट यूज से रोकें,आवश्यकता पड़ने पर 'पेरेंटल कण्ट्रोल' जैसे सॉफ्टवेर आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है.अमेरिका में तो सिएटल,वाशिगटन में रेसिदेंसिअल  ट्रीटमेंट सेंटर की स्थापना अगस्त २००९ में की गई है,जो इस रोग से ग्रसित लोगों को ४५ दिनों का इलाज करती है.पर भारत में अभी इसके लिए कोई ट्रीटमेंट सेंटर नहीं खोला गया है,जबकि ये बीमारी लाखों युवाओं के भविष्य को डुबो रही है.युवाओं की पोजिटिव एनेर्जी जो उसके केरिअर को बना सकती है,दिन रात इन्टरनेट के जाल में फंसकर उसे बर्बाद कर रही है.
     यहाँ आवश्यकता है हम सबको इन्टरनेट जैसी बहुपयोगी तकनीक के सही प्रयोग के जानकारी की,और दिग्भ्रमित युवा पीढ़ी को इसके दुरूपयोग से बचने की सलाह देने की,जिससे हम देश के विकास में सहयोग का हिस्सा बन सकें. 

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भारत में इन्टरनेट की  दशा (ऑरकुट कल्चर)
वैसे तो इस बात से जरा भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज दुनिया इन्टरनेट की तकनीक पर पूरी तरह आधारित हो चुकी है,साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह तकनीक मानव सभ्यता के विकास की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण तकनीक है,पर..........निश्चित तौर पर भारत में इसकी स्थिति दिग्भ्रमित युवाओं ने खासी बिगाड़ कर रख दी है.

आंकडे क्या कहते हैं?
२००९ के दूसरे तिमाही खत्म होने पर इकट्ठे किये गए आंकडे बताते हैं कि-पूरी दुनिया में इन्टरनेट यूजर्स कि संख्यां १,६६,८८,७०,४०८ तक पहुँच गई है,यानी पूरी जनसंख्याँ का २४.७% (जबकि दुनिया की पूरी आबादी ६ अरब ७६ करोड़ थी),जिसमे से सिर्फ एशिया में इन्टरनेट यूजर्स का प्रतिशत ४२.२ है,यानी ७०४,२१३,९०३.बाकी ५७.८% में पूरी दुनिया यानी जन्मदाता अमेरिका सहित जहाँ दुनिया के २४.९% लोग तथा अमेरिकी जनसंख्याँ का सिर्फ १३.७% यानी ९२७,४९४,२९९ इन्टरनेट यूजर्स हैं.
  जहाँ तक भारत की बात है, इन्टरनेट के प्रयोग में एशिया में इसका स्थान चाइना और जापान के बाद तीसरा है. चाइना में ३३ करोड़ ८० लाख,जापान में ९ करोड़ ४० लाख तथा भारत में ८ करोड़ १० लाख यूजर्स हैं,जबकि भारत की अनुमानित जनसंख्याँ १ अरब १५ करोड़  है,यानी भारत जैसे विकासशील देश की आबादी का लगभग ७% लोग इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं.यहाँ एक बात ध्यान देने वाली है कि अमेरिका जैसे अति विकसित तथा जन्मदाता देश में आबादी का १३.७% लोग इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं.अब ये कहा जा सकता है कि इन्टरनेट के प्रयोग में भारत बहुत आगे तथा काफी आकर्षित है.(आंकडे internetworldstats .com के रिपोर्ट पर आधारित).

क्या करते है भारत के लोग इन्टरनेट पर?
काफी चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं,अगर इसकी गहन छानबीन की जाय.
यहाँ ब्रोडबैंड यूजर्स की संख्यां जून २००९ के अनुसार ५२ लाख ८० हजार है...यानी फास्ट इन्टरनेट.१६ नवम्बर २००९ के आंकडो पर यदि गौर करें तो भारत के लोग निम्नलिखित वेब साइटों पर वरीयता के आधार पर समय व्यतीत/बर्बाद करते हैं:
१.गूगल इंडिया
२.गूगल
३.याहू
४.फेसबुक
५.ऑरकुट
६.ब्लॉगर
७.यु ट्यूब
८.रीडिफ़
९.विकिपीडिया
१०.इंडिया टाइम्स
     इन वेब साइटों पर किये जाने वाले कार्यों पर अगर दृष्टिपात करें तो इनमे से गूगल,याहू,रीडिफ़  सर्च इंजन,ईमेल,आंसर्स,न्यूज़,मैप तथा अन्य उपयोगी कार्यों के लिए प्रयोग किये जा सकते हैं.ब्लॉगर एक उपयोगी ऑनलाइन डायरी माना जाता है.विकिपीडिया व इंडिया टाइम्स  ज्ञान का उपयोगी भण्डार है.यू ट्यूब ज्ञान व मनोरंजन दोनों प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
   अब ऊपर की सूची में बचते है दो वेब साईट: पहला फेसबुक तथा दूसरा ऑरकुट.क्या होता है ज्यादातर इन दोनों वेब साइटों पर,आइये जानते हैं.........
  फेसबुक तथा ऑरकुट सोशल नेट वर्किंग साइट्स हैं,साधारण भाषा में यहाँ फ्रेंड्स बनाये जाते हैं.फेसबुक का प्रयोग अमेरिका में ३०% लोग करते हैं और भारत में ४% लोग.भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण (?) वेब साईट ऑरकुट के आंकडे बताते हैं कि-
 ऑरकुट का ९८.८%(यानी ९९%) प्रयोग भारत में तथा १.२% में बाकी दुनिया.यानी भारत का सबसे सुपरहिट वेबसाईट-ऑरकुट.(अलेक्सा रेटिंग पर आधारित).

क्या होता है ज्यादा ऑरकुट पर?
         ऑरकुट फ्री-एक्सेस सोशल नेट वर्किंग साईट है, यानि इस पर कोई भी आ-जा सकता है.इसकी स्थापना २२ जनवरी 2004 को गूगल के द्वारा की गई थी.इसका नाम गूगल कंपनी में कार्यरत ऑरकुट बुयुकोक्तेन के नाम पर रखा गया जो इसके रचियेता थे. दरअसल इसकी रचना के पीछे उद्येश्य इन्टरनेट यूजर्स के बीच जानकारी बांटना अधिक और परिचितों की स्थिति की जानकारी लेना ही रहा होगा,पर अधिकाँश लोग इसका दुरूपयोग तो कर ही रहें है,साथ ही साथ ही इसकी लत ने  लाखों भारतीय युवाओं को बर्बादी के कगार पर ला कर खड़ा कर दिया है.स्टूडेंट्स और युवाओं का कीमती समय जो उनके विषयों के अध्ययन व अनुसंधान में लगाना  चाहिए,'मनोरंजन भी जरूरी है'के नाम पर वो घंटो व दिन भर अपना समय ऑरकुट पर बर्बादकरते हैं और अक्सर ठगी,धोखे आदि का शिकार हो जाते हैं.साईबर क्राईम के अध्ययन के दौरान तो मुझे कई ऐसी जानकारी मिली कि ऑरकुट के जरिये कई लड़के-लडकियां  ठगी,धोखे के अलावे हत्या और बलात्कार तक का शिकार हो जाते  हैं.ऑरकुट जैसी सोशल नेट वर्किंग  साईट का ये दर्दनाक सच इन्टरनेट के ज्ञान के अभाव में युवक-युवतियों से शायद अब तक छुपा हुआ है,या फिर 'इन्टरनेट लत विकार'(Internet addiction disorder ) से अधिक मात्रा  में पीड़ित होने के कारण वे जानकारी होने पर भी अपने ऊपर संयम नहीं रख पाते है.दरअसल ऑरकुट पर फेक प्रोफाइल की भी भरमार है.नकली खाता खोलने का ही उद्द्येश्य धोखा देना है.
मेरा ये कहना बिलकुल नहीं है कि ऑरकुट पर खाता नहीं खोलना चाहिए,ऑरकुट एक अच्छे वेबसाइट के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है,और कुछ लोग ऐसा कर भी रहे हैं,पर क्या स्टूडेंट्स आदि विकिपीडिया,याहू आंसर ,ई -बुक्स,गूगल लाइब्रेरी,टेक रिपब्लिक ,यूजिंग इंग्लिश,रेपिड शेयर,जोहो,स्क्राईब्द जैसे हजारों जानकारी से भरे साइट्स का उपयोग कर रहे हैं? 

सबसे ज्यादा क्या करते है युवा ऑरकुट पर? 
पहले तो लड़के-लड़कियां  अपना अकाउंट खोलते हैं,फिर शुरू होता है अन्य लड़के-लड़कियों के प्रोफाइल कि खोज,जहाँ बहुत सारी मात्राओं में फ़िल्मी नायक-नायिकाओं कि तस्वीर वे अपनी जगह  लगाये होते  हैं जो एक-दूसरे को आकर्षित करने के लिए होते है.फिर अच्छे प्रोफाइल वाले को वे मित्रता के लिए प्रार्थना करते हैं,उधर से भी अगर प्रोफाइल पसंद आ जाता है तो दोनों मित्र बन जाते हैं और तब शुरू होता है-स्क्रैप  का सिलसिला,जी हाँ!यहाँ मैसेज के आदान-प्रदान को स्क्रैप ही कहा जाता है.फिर निजी संदेशों से सम्बन्ध बढ़कर निजी मुलाकातों तक भी कभी-कभी पहुच जाता है,नकली प्रोफाइल पर आधारित लोग जब आमने सामने आतें हैं तो संवेदनशील कोई पक्ष ठगा सा महसूस करता है.सेंटिमेंट में बहा कर बहुत सी निजी जानकारी लेकर उन्हें क्राइम का शिकार तक बनाया जाता है.कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि यहाँ भारत के युवा सबसे ज्यादा समय बर्बाद करते हैं.
आज भारत में शायद ही कोई  युवा (खासकर लड़का) होगा,जो
इन्टरनेट का औसत प्रयोग करता हो,और उसका ऑरकुट पर खाता न हो,और इनमे से बहूत  ऐसे भी हैं जो अपनी पढाई-लिखाई को ताक पर रख कर ऑरकुट में ही अपना भविष्य तलाशते नजर आते हैं.आज आपको भारतीय समाज में बहुत सारे पुराने यूजर्स ये पूछते हुए नजर आ सकते हैं,"ऑरकुट पर अकाउंट बनाया क्या?" 
           आइये एक नजर डालते हैं इससे सम्बंधित कुछ और तथ्य पर :
  १.अगर आप गूगल सर्च (जिसके द्वारा ऑरकुट संचालित किया जाता है)पर ही 'ऑरकुट मिसयूज'सर्च करें तो गूगल सर्च आपको कुल ८७,८०० लिंक इससे सम्बंधित उपलब्ध कराएँगे.
  २.एक ताज़ी घटना के लिए नीचे के लिंक को क्लिक करें-
       अ. Orkut misuse -be -aware
  इसके अलावे आप सैकड़ों लिंक इन्टरनेट पर पा सकते हैं,जो बतातें हैं कि इस ऑरकुट कल्चर में अगर आप अपने को इन्टरनेट के दुरूपयोग से बचा कर  इन्टरनेट का सदुपयोग कर पातें हैं तो देश के लिए आप एक बड़ा काम कर पाने में सक्षम हो सकेंगे.                                                                             

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इन्टरनेट कैफे- खतरे व बीमारी की दूकान
इन्टरनेट कैफे या सायबर कैफे इन्टरनेट एक्सेस करने का सबसे सुलभ साधन माना जाता है.बहुत सारे कामकाजी लोग यहाँ आकर अपने दिन भर के काम की रिपोर्टिंग  चंद मिनटों में अपने ऑफिस के वेब साईट पर पोस्ट कर देते हैं या फिर अपने बॉस के ई-मेल पर भेज कर निश्चिन्त होते हैं.बहुत सारे स्टुडेंट ऑनलाइन फॉर्म भी सायबर कैफे से भर देते हैं और वे ऑनलाइन पढ़ाई से सम्बंधित सामग्री भी ढूंढते नजर आते हैं.इन्टरनेट के अन्य बहुत से अनुप्रयोगों के व्यवहार का सबसे सुलभ साधन भारत में सायबर कैफे ही है.देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा अत्याधुनिक तकनीक से लैश अधिकाँश सायबर कैफे के मालिकों को देश व व्यक्तिगत सुरक्षा से कोई लेना देना नही है,उन्होंने तो सिर्फ पैसे कमाने के लिए ही कैफे खोल रखा है.कैफे में कौन आया, कौन गया और उसका उद्द्येश्य क्या था,ये जानने की ये कोई जरूरत नहीं समझते.हाल के दिनों में आतंकवादियों और जालसाजों ने आतंक और हेराफेरी के लिए कैफे को ही अपना सबसे बड़ा माध्यम बनाया है.सायबर क्राईम विशेषज्ञों के सामने सबसे बड़ी परेशानी उस समय आती है जब वे आई०पी०अड्रेस के आधार पर सटीक कंप्यूटर,जिससे क्राइम किया गया है,तो पकड़ लेते हैं,पर जब वो कंप्यूटर किसी सायबर कैफे का होता है तो और यदि कैफ़े ने यूजर्स का कोई रिकॉर्ड नही रखा होता है तो सारा किया धरा व्यर्थ साबित हो जाता है.
भारत में सायबर कैफ़े के लिए बने क़ानून क्या कहते है? 
भारत में यदि सायबर कैफ़े के लिए सरकार के द्वारा बनाये नियमों की बात करें तो सबसे पहले इसकी चर्चा 'इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी एक्ट २०००' में की गयी जो पूर्ण नहीं थी.इस एक्ट में सायबर कैफ़े को परिभाषित तक नहीं किया गया था और एक्ट के आधार पर सायबर कैफ़े को 'नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर' के अंतर्गत माना गया था और इसी एक्ट के धारा ७९ में इसकी जवाबदेही तय करने का प्रयास किया गया था.पर 'इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट २००८' में पहली बार सायबर कैफ़े को परिभाषित करते हुए 'सायबर कैफ़े रेग्युलेशन एक्ट' पर भी विस्तार से क़ानून सामने रखे गए.इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट २००८ की धारा 2(na) में इसे परिभाषित करने का भी प्रयास किया गया और इसके मुताबिक़ सायबर कैफ़े किसी भी तरह की इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने का वह माध्यम है जो व्यवसाय के उद्द्येश्य से आम लोगों के लिए होता है.वास्तव में यह परिभाषा इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी अमेंडमेंट एक्ट२००६ में एक्सपर्ट कमिटी के द्वारा  जो सायबर कैफ़े को परिभाषित करने का प्रयास किया गया था,उसी का संशोधित रूप था.हालांकि ये परिभाषा विभिन्न राज्यों द्वारा सायबर कैफ़े के लिए पारित रेग्युलेशन में दिए अलग-अलग परिभाषा  से थोडा हट के हो सकता है.वैसे भी इस एक्ट को मोनिटरिंग करने के लिए केन्द्र सरकार की एजेंसी और राज्य सरकार द्वारा जारी किये गए रेग्युलेशंस में सामंजस्य स्थापित करने के लिए आवश्यक है कि एक ही 'ऑल इंडिया सायबर कैफ़े मोनिटरिंग ऑथोरिटी' बने जो पूरे देश के सायबर कैफ़े को बनाये नियमों को लागू करवाने पर जोर दे सके.
क्या करना चाहिए सायबर कैफ़े को ?
भारत में बने क़ानून के आधार पर सायबर कैफ़े को कम से कमनिम्न नियमों का पालन तो अवश्य ही करना चाहिए:
             किसी विजिटर को सायबर कैफ़े में प्रवेश नही दिया जाना चाहिए जब तक कि वह अपना विश्वसनीय फोटो पहचान पत्र,जैसे-पासपोर्ट,कॉलेज परिचय पत्र,पैन कार्ड,वोटर आईडी,ड्राइविंग लायसेंस,ऑफिस परिचय पत्र आदि मूल रूप में न दिखाए.
             प्रत्येक कैफ़े मालिक/मैनेजर को यूजर्स के लिए एक रजिस्टर खोल लेना चाहिए जिसमे एंट्री यूजर के द्वारा ही भरा जाना चाहिए.रजिस्टर का फोर्मेट निम्न तरीके से हो:
Sr.No. Date Start Time End Time Full Name, address, age, Gender X Telephone Number of user / visitor Type of
Photo Identification  produced
Purpose for visiting cyber cafe
web surf /
E mail/ Chat etc.
Initial of conductor /manager Signature of user
  ३. कैफ़े का मालिक या संचालक लॉग रेकॉर्ड को मांगे जाने पर पुलिस के समक्ष तुरंत प्रस्तुत करे.
किस तरह के क्राईम हो सकते हैं सायबर कैफ़े से
दरअसल यूजर्स पर निगाह नहीं रखने के कारण बहुत सारे कैफ़े अश्लीलता (पोर्नोग्राफी) का अड्डा बन गए हैं.किशोरावस्था में कदम रखे युवा के लिए घर तो असुक्षित है पर कैफ़े इनके लिए सुरक्षित चारागाह  हैं. कानून  में फोटो पहचान पत्र की व्यवस्था इसलिए भी की गयी है कि ये परिचय पत्र नाबालिगों को इश्यू नहीं किये जाते हैं इसके अलावे सायबर कैफ़े आज जायज और नाजायज दोनों ही तरह के चैटिंग का भी सबसे बड़ा अड्डा बन चुका है.ई-मेल से धमकी या ई-मेल का नाजायज प्रयोग भी अक्सर वैसे ही सायबर कैफ़े से किया जाता है जहाँ विजिटर्स का रिकॉर्ड मेनटेन नही किया जाता है.आतंकवादियों द्वारा अधिकाँश मैसेज कैफ़े के कंप्यूटर से ही किया जा रहा है,जिससे वे आसानी से बच निकलते हैं और धरा जाता है कैफ़े मालिक.फायनांशियल चीटिंग जैसे बैंक खातों  में हेरा-फेरी ,फीशिंग,किसी का प्राइवेट इन्फोर्मेशन चुराना या लेना, लर्किंग-जिसमे दूसरे की एक्टिविटी वाच की जाती है आदि आदि के लिए लापरवाह कैफ़े से सुरक्षित जगह सायबर क्रिमिनल के लिए और कुछ नही है.कभी-कभी तो किसी लड़की का फेक अकाउंट भी कैफ़े से ही बना दिया जाता है जिस पर उसे अश्लील ढंग से प्रस्तुत कर उसकी इज्जत को तार-तार करने का प्रयास किया जाता है.
कुल  मिलाकर कहा जा सकता है कि जब तक भारत में सायबर कैफ़े में सायबर जागरूकता का विकास  पूर्ण रूपेन नहीं होता है,हम सब असुरक्षित हैं.पुलिस के साथ साथ सायबर जानकार का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वे इस जागरूकता को फैला कर देश को सुरक्षित करें ताकि इंटरनेट की इस अत्युत्तम तकनीक का सदुपयोग हो सके.

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*न्यायालय में सहायक के पद पर वर्ष 1997 से
* डिग्री: एमएससी, एलएलबी, डिप्लोमा इन सायबर लॉ (एएससीएल, पुणे) : एशियन स्कूल ऑफ सायबर लॉ,  पुणे द्वारा अगस्त 2009 के लिए 'स्टूडेंट ऑफ द मंथ' चुने गए हैं.
संपर्क: rksinghmadhepura@gmail.com
कुछ  और जानें.

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